Gau Vatsa Bharat Bhai Shri
जीवन परिचय
भारत भाई श्री
मार्गदर्शक – परम पूज्य ग्वाल संत श्री गोपालनंद सरस्वती जी महाराज
शरीर का पूर्व नाम – सुनील पारीक
जन्म स्थान – ग्राम पोस्ट- दत्तोब, तह.-टोड़ारायसिंह, जिला -टोंक (राज.)
लौकिक शिक्षा:-
(1) भूगोल मे स्नात्तकोत्तर
(2)योग डिप्लोमा + वाई सी बी 3 लेवल + योग से नेट
(3) बेचलर ऑफ़ एजुकेशन
आध्यात्मिक शिक्षा – सीख रहें है
सामान्य लौकिक जीवन और अध्यात्म यात्रा :
इस वर्तमान शरीर का जन्म 01दिसंबर 1989 को टोंक जिले की टोड़ारायसिंह तहसील के दत्तोब ग्राम मे ब्राह्मण परिवार मे हुआ।
बचपन मे ही अध्यात्म मे थोड़ी रूचि थी, स्वविवेक से जो इस शरीर को अच्छा लगता वही कार्य बिना किसी के बंधन के ये शरीर करता।
बचपन बहुत चंचलता मे बीता,, जिसकी वजह से इस शरीर बारहवीं तक 12 स्कूल बदलनी पड़ी..
बचपन मे गोमाता के प्रति कोई विशेष बीजाङ्कुर नहीं था पर इस शरीर के दादाजी और पिताजी के घर मे ट्रांसपोर्ट का व्यापार था और उन ट्रको मे वे अधिकतर गोमाता के लिए चारा भरकर गोमाताओ तक पहुँचाते थे और उस धर्म युक्त आय से प्राप्त रोटी रक्त बनकर ही रगो मे बहने लगी…
बचपन से ही शरीर के साथ जुडा मन आर्मी मे जाकर देश सेवा करने का इच्छुक था,,इस हेतु हर सम्भव प्रयास किया,, नेशनल कैडेट क्रॉप्स की आर्मड विंग मे भर्ती होकर गणतंत्र दिवस परेड मे भी लिया और लेफ्टिनेंट के समेत 18 भारतीय सेना की भर्ती देखी इंटरव्यू दिया छोटी -छोटी गलतियों की वजह से सलेक्शन नहीं हुआ..
इस वजह से तनाव की स्थिति जीवन मे बन गई..
कहीं -कहीं दिनों तक ये शरीर एक ही घर मे अंधेरा करके रहने लगा,, तनाव की ऐसी अवस्था की कहीं दिनों बाद नहाने पर भी मग से पानी गिरता फिर भी आँखे बंद नहीं होती,, ध्यान की एक विद्या पता लगी तो तनाव से बाहर आया… इस प्रकार ऐसा जीवन मे दो तीन बार हुआ तो मन की कार्यशैली कुछ- कुछ पता चलने लगी..
महीनों तक एक ही कमरे मे अकेले मे तनाव और ध्यान की अवस्था मे बिताये तब आभास हुआ भीतर सिर्फ मन तक सीमित कुछ सीमित नहीं है इस अंतःकरण को समझना है..
एक बार की बात है ये शरीर इसके माता पिता के घर गया हुआ था,, शरीर के पिताजी ने गौमाताओ की गौशाला के लिए चारा बेचने को इकठ्ठा करके रखा हुआ था,,और इस शरीर को उसकी सुरक्षा करने का भार सौंप गए,, रात को जाली तोड़कर कुछ गोमाताये भीतर आ गई,, कहीं बार इस मूर्ख शरीर ने उन्हें भगाने का प्रयास किया और इस पर भी वे गोमाताये भूखी मरती आयी तो इस मूर्ख शरीर ने एक ईंट के टुकड़े कर एक छोटी बछडी मैया की ओर फेंका वो टुकड़ा उन बछडी मैया गर्दन पर गिरा और वो बछडी मैया गिर कर तड़पने लगी,, जैसे ही इस शरीर ने उन बछडी मैया को तड़पते हुए देखा तो भीतर कुछ हलचल हुई और ऐसा लगा जैसे प्राण पेट से सर पर आ गए ये शरीर तुरंत भागकर बछडी मैया के पास गया लेकिन तब तक बछडी मैया उठ कर ख़डी हो गई थी,,
तब उनको स्वस्थ देख जान मे जान आयी और भीतर से आवाज़ आयी की अपने पितृ धर्म को छोड़ और इन गैया मैया को चारा जीमने दे,,, तो इस शरीर ने खेत की तारबँधी को हटा दिया और सेंकड़ो गोमाताओ को जीमने के लिए उस एकत्रित किए हुए चारे मे छोड़ दिया,,
और इसी दौरान ये शरीर एक समाधी स्थल पर जाया करता था,,, वहां दुखी लोगो को देख मन विचलित होता और जब समाधी वाले संत किसी शरीर मे प्रकट होकर आते तो दुखियो की सेवा मे ये शरीर उनकी निस्वार्थ सहायता करता,,
शरीर मे आने वाले देवता धर्म करने के लिए इस शरीर को और मन बार -2 प्रेरित करते तो मन मे धर्म के प्रति दृढ़ता उत्पन्न होने लगी..
इसी दौरान ये शरीर शिक्षण संस्थान मे पढ़ाने लगा,, और प्राप्त होने वाली आय को घंटो तक देखता पर पर उसमे कोई स्थिर सुख की अनुभूति नहीं हुई..
फिर उन पैसो का पक्षियों को अनाज (चुग्गा ) डालने लगा और गोमाताओ को फल खिलाने लगा ,,, जिससे मन मे शांति अनुभव होने लगी,,
फिर ये निष्काम दान जीवन के हर दिन मे प्रवेश कर गया,,
इसी दौरान योग के बारे मे सुना और इस शरीर ने मोहन लाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी,उदयपुर मे योग के डिप्लोमा मे प्रवेश ले लिया,, और वहां एक किराये का कमरा लेकर रहने लगा और वहां एक साधना बिना किसी गुरु के निर्देशन के करने लगा उस साधना का फल भी इस शरीर को नहीं पता था फिर भी चित 20 दिनों मे ही बहुत निर्मल हो गया था,, स्वप्न और साधना के समय बहुत तीव्र अनुभव होने लगे जिससे कुछ भय की अनुभूति हुई और साधना को बीच मे ही छोड़ दिया,,
लेकिन जब घर से बाहर निकला तो दुनिया को देखने का दृष्टिकोण बहुत बदल चुका था,,
अब जहाँ कहीं भी गोमाताये कचरे के ढेर पर ख़डी हो सड़ा गला खाती तो मन मे बड़ी पीड़ा होने लगी ऐसा लगा कि ये पीड़ा उनकी नहीं बल्कि इस शरीर की है और जो कुछ भी पैसे होते उनके फल लेकर उन्हें उन गोमाताओ को ये शरीर खिलाता,,, फिर हनुमान जी महाराज के मंदिर मे बैठ उनको गोमाताओ और अन्य जीवो का दुखड़ा सुनाता और कहता की भगवन इन सबका दुख आप मुझे दे दो पर पर इनकी पीड़ा को कम कर दो और भगवन के सामने फुट 2 कर रोने लगता,,
धीरे धीरे एक ऑनलाइन व्यापार करने लगा और उससे जो आय होती उन सबका फल और अन्य खाद्य सामग्री खरीद कर ये शरीर पीड़ित दिखने वाली गोमाताओ और अन्य जीवो को खिलाने लगा,, तब ऐसा लगने लगा मानो इन पर अपना सब कुछ लुटा दु..
समय आगे बढ़ा और योग की शिक्षा के लिए ये शरीर ऋषिकेश पहुंचा फिर भी गोमाताओ को ढूंढ 2 कर चारा डालने लगा,,
वापिस आकर जयपुर मे ‘अगस्तय योग अकादमी ‘ नाम से एक संस्था खोली और उससे होने वाली आय को भी ये शरीर पक्षियों और गोमाताओ के लिए खर्च करता..
समय आगे बढ़ा और पूरे संसार मे कोरोना ने प्रवेश किया और ये शरीर अकादमी को बंद कर जन्म शहर पर आ गया,,
कोरोना वायरस के कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे,, इसी दौरान घर के बाहर कुछ गैया मैया आने लगी,, वो अपने कर्ण और सुंदर नैत्र से इस शरीर से आस करती जब वो इस शरीर को अपने दोनों कानो और प्यारे नैत्रो से इस तरह से देखती तो ऐसा लगता जैसे भीतर ख़ुशी की लहर उठने लग गई,,, और इस शरीर ने उनके लिए चारे की व्यवस्था करने फसल का खेत किराये पर ले लिया और हर दिन उनके चारे पानी की व्यवस्था करने लगा उन गोमाताओ की संख्या कुछ ही दिनों मे सेंकड़ो की संख्या पार कर गई,, और पूरे शहर मे घूम- 2 कर भूखी गौमाताओ हेतु उनके चारे की व्यवस्था करने लगा,, चारा व्यवस्था करने से इस शरीर के कमाए हुए सभी रूपए ख़त्म होने वाले थे,,, मन मे चिंता उठी की कल इन गोमाताओ का क्या होगा। उस दिन रात को 3 बजे ही निद्रा से यह शरीर जाग गया और एक समाधी स्थल पर जाकर आँखे बंद करके बैठ गया और ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना करने लगा,,,
और मन मे कहीं लोगो को जोड़कर एक संस्था बनाने का विचार आया तो उसी समय “निष्काम गौ सेवा तंत्र “नाम से प्रभु ने संस्था की योजना बनवाई.. और कुछ दिनों प्रभु की उस योजना पर इस शरीर ने काम किया तो सज्जनों का सहयोग मिलने लगा,,, एक बार ऐसे ही गड्डे मे गिरी गौमाता फंसी हुई गोमाता मिली उनको अन्य शरीरो की सहायता से बाहर निकलवाया,, एक दिन तो डॉक्टर को बुलाकर उपचार किया लेकिन दूसरे दिन वह डॉक्टर नहीं आया तो इस शरीर ने ऑनलाइन ही देख कर गोमाता के शरीर को उपचार दिया..
इसके बाद अब गैया मैया लगभग भीतर उतरने लग गई थी,,हर दिन अब बीमार और एक्सीडेंटल गोमाताओ की सेवा हेतु फ़ोन आने लगे और जल्दी ही सेवाभावी लोगो की एक टीम गठित हो गई एक दिन गोमाताओ की लीला से कुछ ऐसी घटना हुई और ये शरीर अन्य 8 शरीरो के साथ छ :माह कारावास मे बिताने चला गया,,
कारावास के समय गैया मैया के प्रति श्रद्धा और भी दृढ़ होती गई और जब गैया मैया ने इस शरीर को बाहर निकाला तो ये गोमाताओ और अन्य जीवो के अधिकारों की रक्षा के लिए ये शरीर लड़ने लगा,,, और संघर्षो के बीच गैया मैया की एक और मार्मिक लीला हुई जिसे लम्पी नाम दिया गया उस समय इस शरीर को गैया मैया ने खूब सेवा मे लगाया,,उसी के साथ ही गैया मैया ने खुद हेतु इस शरीर से एक गौ चिकित्सालाय बनवाया ,,,अब चिकित्सालय के साथ ही इस शरीर को गोमाता ने जीवन के कुछ वर्षो तक संघर्ष कराया इन्ही संघर्षो के बीच ही परम पूज्य गुरूदेव भगवान से कहीं बार भेंट हुई और मार्गदर्शन प्राप्त होने लगा,,,
मन के भीतर गोमाताओ को लेकर ये विचार बना की अब कुछ विशेष करना ही है और उसके लिए प्रभु ने इस शरीर ने कुछ रूपरेखा तैयार करवाई,,किन्तु इसके विपरीत गैया मैया तो अलग रूपरेखा थी और मैया परम पूज्य गुरूदेव भगवान के सानिध्य मे “एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव” मे इस शरीर को ले आयी..
और परम पूज्य गुरूदेव भगवान ने गौमाता का दिव्य महिमा का चरित्र सुनाया और फिर सब कथावक्ताओ साथ लेकर सम्पूर्ण भारत देश मे गोमाताओ की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए भगवती की कृपा से अन्य फाउंडेशन के साथ “धेनु धन फाउंडेशन की” स्थापना करवाई..
अब इसका क्रम आगे जारी है…