Pradhan Prajapat Ji

जीवन परिचय :- 
नाम:- प्रधान प्रजापत
जन्म स्थान:- टोडारायसिंह, टोंक, राजस्थान
जन्म दिनांक:- 07/05/1998
शिक्षा:- 12th, BA arts ITI electrician
सानिध्य:- परम पूज्य गोवत्स संत श्री बालकृष्ण जी महाराज
मन में भाव:- गो माता की निस्वार्थ सेवा
               
 
 
 
       
प्रारम्भिक जीवन :- 
इस शरीर का जन्म एक छोटे से गांव में हुआ था। मेरे दादा-दादी और माता-पिता के संस्कार और आशीर्वाद से मुझे शुरू से ही संत सेवा और जीव सेवा का भाव मेरे मन में था। मैंने 12वीं कक्षा व बीए व आईटीआई कर रखी है। जो ही मैंने 12वीं पास की, तब एक कपड़े की दुकान पर काम करने लगा। मुझे वहाँ पर संतुष्टि नहीं हुई, फिर मैंने वह काम छोड़ और खुद का अपना एक बिजनेस स्टार्ट किया और उसके साथ-साथ पही एक संत, जिनके कार्यक्रम में यूट्यूब पर लाइव चलाने का कार्य भी साथ में करता था, और गुरुदेव भगवान को देखकर के गौमाता की सेवा में प्रेरणा भी मिलती थी। एक दिन का समय था, जब मैं एक संत के कार्यक्रम में बालकृष्ण जी महाराज जी मिले। मैं उनके साथ 9 दिन तक रहा, पर मेरे मन में एक ही भाव आता था, कि गौमाता की सेवा कैसे हो?
हमारे टोडारायसिंह में भी एक गौशाला बने, जिसमें गौमाता की निस्वार्थ भाव से सेवा हो, तब गुरुदेव भगवान बोलते थे कि जल्द ही गौमाता की सेवा वहाँ पर भी निस्वार्थ भाव से होने लगेगी। फिर थोड़े दिन हुए और हमारे पास में एक पहाड़ पड़ता है, जहाँ पर निष्काम गौसेवा तंत्र समिति की पूरी टीम गौमाता को पहाड़ से उतारने के लिए वहाँ पर गई थी, फिर मैंने उनको देखा कि ये गो-सेवक गौमाता को पहाड़ से उतारने के लिए और जानवरों से बचाने के लिए जा रहे हैं, तो मेरे मन में भी एक भाव जगा कि मैं भी क्यों ना उनके साथ जाऊं और गौमाता को बचाऊँ। मैं भी इनके साथ पहाड़ पर चला गया, जिसमें सभी गो-सेवक भाई गौमाता को बचाने पहुंचे थे और सभी गौमाता को पहाड़ से नीचे उतार करके लेकर आये। मेरे मन में भी भाव जागा कि अपने को भी इनके तरह गौमाता की सेवा करनी चाहिए। जो भी कोई गौमाता का एक्सीडेंटल या निसहाय अवस्था में केस आता था उसमें सेवा करवाने के उद्देश्य से भगवती मुझे कृपा करके बुलाती थी। फिर गौमाता अपनी कृपा मुझ पर बरसाने लगी और मेरे भीतर निःस्वार्थ भाव से सेवा करने का मन बनता गया। भगवती ने सेवा में ऐसा लगाया कि जो व्यापार मैं कर रहा था वह पूरी तरीके से कोरोना की चपेट मे आने से पूरी तरह नष्ट हो चुका था। फिर भी गौमाता ने मुझे अपनी सेवा में लगाय रखा। ऐसे समय मे जहाँ हर तरफ से मैं दबाव महसूस कर रहा था, गौमाता ने ही मुझे गौशाला के पास में एक नौकरी दिलवा दी, जिससे मेरे परिवार का गुजर बसर हो जाता है। आज भी ये शरीर नौकरी कर रहा है और उसके साथ-साथ गौमाता ने अपनी सेवा मे भी लगा रखा है। सेवा के दौरान कई मुसीबतें आई और गई… परन्तु गोमाता ने हाथ थामे रखा और इस शरीर से गौमाता की सेवा होती चली गई। आज भी यह सेवा निस्वार्थ भाव से तन-मन-धन और परिवार से ताने सुनकर भी चल रही है और विस्तार भी ले रही है। इसमें कई दुविधाएं आती जाती रहेगी, लेकिन भगवती गैय्या मैय्या से यहीं प्रार्थना है कि अपने पुत्र का हाथ नहीं छोडे…
परम पूज्य गुरूदेव भगवान ने धेनु धन फाउंडेशन की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है, ताकि सम्पूर्ण देश मे गोमाता की पुनः प्रतिष्ठा हो सके।
आगे जैसा भगवती आदेश करेंगी ऐसा ही ये शरीर करेगा।